यहां जब युद्ध हुआ"*
यहां जब युद्ध हुआ"*
*"यहां जब युद्ध हुआ"*
घिरे घनघोर तिमिर यहाँ
सर्वस्व दहन कर लढ पड़े
घर के दीपक बुझकर के
अंधेरे में ही डूब गये... यहां जब युद्ध हुआ।।
मिट गये पुरुष यहाँ
चढ़ी बालायें हवन में
घने कोहरे बीच सुहागनोने
श्रृंगार खो दिया जोहर में..यहां जब युद्ध हुआ।।
मंदिर भी लूटे गुंबद भी लूटे
देव भी लुटे दानव भी लूटे
लूट गये सब के घरबार यहां
पशु पक्षी भी रो पड़े.. यहां जब युद्ध हुआ।।
लड़ रहे जवान देशके लिये
निर्दोष जनता भी अधजली
वीरोने भी खाई थी गोली
कायरो की भी गई बली.. यहां जब युद्ध हुआ।।
खड़ी थी माताएँ द्वार पर
अंसुवन की धार आँखों में
ना बचा कोई भी नगर में
सिर्फ अश्रु भरे थे आंचल में..यहां जब युद्ध हुआ।।
कौन सी जीत किसकी जीत
क्या मिला और किसने पाया
रक्तरंजित समर में गूंजी चीखे
चील कौवे भी खुश न हुए ..यहां जब युद्ध हुआ।।
मीनाक्षी किलावत (अनुभूति) वणी

