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sangeeta kathuria

Drama Inspirational

0.4  

sangeeta kathuria

Drama Inspirational

खुदा से रूबरू

खुदा से रूबरू

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यूँ ही इक दिन मन में आया, 

अपने खुदा से बात करूँ,

पहले उसको ढूँढू और फिर, 

उसको एक फरियाद करूँ।


यही सोचते आँख लग गयी, 

देखा अजब नजारा था,

रत्न जडित सिहांसन पर बैठा, 

मेरा ईश्वर प्यारा था।


भूल गयी मैं शीश झुकाना, 

अविरल नैना छलक गए,

क्यूँ हर पल है चिंता मन में, 

होंठ मेरे यूँ बोल गए।


क्यूँ होते सुख के पल छोटे, 

क्यूँ दुखों की रात बड़ी,

क्यूँ हर लब पर शिकवे तेरे, 

क्यूँ हर आँख है नीर भरी।


हँसकर बोले मुझसे दाता, 

ऐसे कब क्या मिलता है,

याद किया तो तब मैं आया, 

ऐसे कब रब मिलता है।


कान लगाकर मुझको सुनना, 

रोज नहीं मैं आऊँगा,

सुख-दुःख दोनों पाते हैं कब, 

राज तुम्हें बतलाऊंगा।


मेरे सारे प्यारे बच्चे, 

पिता तभी कहलाता हूँ

इन्सा से इन्सा की नफरत, 

समझ नहीं मैं पाता हूँ।


मेरे दिल को सब हैं प्यारे, 

कोई भी भेदभाव नहीं

अपने- अपने कर्म है सहते, 

इसमें मेरा हाथ नहीं।


सब पे नज़र मेरी है रहती, 

सबके खाते रखता हूँ,

दिल में कुछ और जुबां पे कुछ, 

सहन नहीं मैं करता हूँ।


मेरे ही बन्दे हैं जब सब, 

खून खराबा फिर है क्यूँ,

इक मिट्टी के सारे बर्तन, 

फिर होती ये नफरत क्यूँ।


सबमें मेरा रूप समाया, 

छल और कपट कहाँ से आया,

जो जो कर्म कमाए जग में, 

वही तो सबके सामने आया।


मैं कोई तुमसे दूर नहीं हूँ, 

द्वेष, अहम और नफरत छोड़ो,

सबको जग में प्यार करो और, 

टूटे हुए दिलों को जोड़ों।


दीन दुखी की सेवा करके, 

मुझको जब दिखलाओगे,

किसी के आँसू पोछोगे जब, 

पास मुझे ही पाओगे।


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