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Vishwa Prakash Gaur

Drama

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Vishwa Prakash Gaur

Drama

खेल खेल में कविता

खेल खेल में कविता

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आरज़ू -- हु तू तू -घनचक्कर

डर्टी पिक्चर,रफूचक्कर,

बन गयी तुकबंदी,

तुकबंदी नें हाथ पावँ पसारे,

दो एक दोहे चौपाई बनाई बिगारे,

बन गयी कबिता।


कबिता हो या बबिता, जूही हो या करिश्मा,

सबसे अच्छी होती है माँ ।

जिसका आँचल हर दुःख दर्द सह लेता है,

हर एक की झोली को खुशियों से भर देता है।


चूमती है माँ, जब अपने बच्चे की पेशानी को।

भूल जाता है माँ का लाडला,अपनी हर एक परेशानी को।

परन्तु माँ का अनियंत्रित लाड, प्यार,दुलार ।

कभीकभी कर देता है, बच्चे का जीवन भी बेकार ।

जीवन की खलनायिकी,


रफ़ी की गायिकी,

महेश भट्ट की आशिकी,

बेबी बी की किलकारियां,

बिग बी सा फनकार, 

शाहरुख़ सा बेमिशाल कलाकार,

शाश्वत सा हँसमुख, या सिद्धांत सा मिलनसार।


सभी में झलकता है, कहीं न कहीं, कभी न कभी,

अपनी माँ का अटूट-अटूट प्यार।।


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