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Vishwa Prakash Gaur

Others

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Vishwa Prakash Gaur

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मेरे सतरंगी सपने

मेरे सतरंगी सपने

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मेरे सतरंगी सपने, और सपनों में बसे तुम,

सारे जहां से न्यारे, मेरे मीत मेरे अपने ।

मेरे सतरंगी सपने।

हर पल तुम्हारे लिए धड़कता दिल,

धड़कती धमनियां, धड़कती शिराएं,

और हर धड़कन में बसे तुम,

सारे जहां से न्यारे, मेरे मीत मेरे अपने,

मेरे सतरंगी सपने।

फूलों से लक दक बगिया में,

भ्रमण करता भ्रमर मन,

प्रीतिमान गुलाबों की क्यारी, 

जैसे शोख परियों की सभा,

हर फूल, कली, पंखुडी में बसे तुम,

सारे जहां से न्यारे, मेरे मीत मेरे अपने,

मेरे सतरंगी सपने।

बर्फीली चोटियों के पीछे उगते विहग की,

इंद्रधनुषी झूले में झूलती, क्रमशः प्रखर होती विभा,

सारे विश्व को प्रकाशित करती सिंदूरी किरण,

हर किरण, हर रश्मि, हर प्रभा में बसे तुम,

सारे जहां से न्यारे, मेरे मीत मेरे अपने,

मेरे सतरंगी सपने।

वेग से प्रवाहित होती नदियों की धारा,

जन जन को नवजीवन देता जल,

बूंद बूंद में अमृत, और अमृत की बूंद बूंद में बसे तुम,

सारे जहां से न्यारे, मेरे मीत मेरे अपने,

मेरे सतरंगी सपने।

अनुपम छटा बिखेरती, हरी भरी वादियां,

कुलांचे भरता हिरन शावकों का झुंड ,

अलबेले पक्षियों का मधुर कलरव,

हर कलरव कलरव में बसे तुम ,

सारे जहां से न्यारे, मेरे मीत मेरे अपने,

मेरे सतरंगी सपने।

सौंदर्यमयी धरती, विस्तृत अनोखा आकाश,

कितनी भी दूरी हो, हर पल पास रहने का अहसास,

तुम्हारी खुशबू से सुवासित धरा का हर कण,

और कण कण में बसे तुम,

सारे जहां से न्यारे, मेरे मीत मेरे अपने,

मेरे सतरंगी सपने।

प्रेरणा प्रेरक तुम्हारी जीवन्त आंखें,

और आकुल मेरा कमजोर मन,

तोड़ भी नहीं सकता जग के ढेर सारे बंधन,

फिर भी रोम रोम से, जीवन पर्यन्त चाहने की कशिश,

क्यों कि मेरे रोम रोम में बसे सिर्फ तुम,

सारे जहां से न्यारे, मेरे मीत मेरे अपने,

मेरे सतरंगी सपने।

मेरे सतरंगी सपने।



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