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Vishwa Prakash Gaur

Others

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Vishwa Prakash Gaur

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सपनों का गांव

सपनों का गांव

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ऊंचे झरनों से प्रस्फुटित होता प्यारा संगीत ,

कल-कल करती नदी सुना रही है ,मिलन के गीत।

चहचहाते चिड़ियों का झुण्ड,

फूलों से अठखेलियाँ करते भँवरे।

तितलियों के खूबसूरत परों पर,

झिलमिलाते पराग के कतरे ।

भोर के सुहाने समय ,

बछड़ों के रंभाने की आवाज ।

सूरज की पहली किरण के साथ ,

मानो हवा भी सुना रही है,

अपना मनपसंद साज।

हल में जुते बैलों के पैरों में,

बंधे घुंघरुओं की रुन-झुन ।

पनिहारिनों की चूड़ियों की खनक,

मंदिर में बजती घंटियाँ,

हवा में उड़तीं किशोरियों की चोटियाँ,

दुधमुहें बच्चे का धारोधार रोना,

ग्वालिन का दही से माखन बिलोना,

एक दूसरे से हँस कर मिलते सभी जन,

जरा से अपनापन पर खोल देते हैं अपना अंतर्मन,

सब कुछ एक सूत्र में बंधा है,

चाहे कुम्हार के आवें की तपिश हो,

या बरगद की घनी छावं ।

कितना प्यारा,कितना निर्मल, कितना सच्चा है,

मेरे सपनों में बसा ये आलीशान गांव ।।   



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