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Vishwa Prakash Gaur

Classics

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Vishwa Prakash Gaur

Classics

मुन्ना

मुन्ना

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अपनी परछाईं को खुद छूता है,

टिमटिमाते हुए तारे की तरह है मुन्ना।


तोतली सी जुबां में बात करे,

मीठे पेड़े की तरह है मुन्ना।


खुद ही रोता है कभी खुद ही कभी हंसता है,

ज्वार भाटे की तरह है मुन्ना।


अभी से ढाल लो चाहे इसे जिस सांचे में,

गीले आटे की तरह है मुन्ना।


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