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Vishwa Prakash Gaur

Others

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Vishwa Prakash Gaur

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बसंत

बसंत

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फिर आया बसंत का मौसम, फिर आई हरियाली ।

फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।


फिर कनेर की डाली ने, ओढ़ी है पीली चूनर,

प्रकृति का श्रृंगार कर रहे, मिल गुलाब औ केशर ।

महुआ की डाली पर गाती, बैठ कोयलें काली ।

फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।


बौर आम के पागल करते, तन -मन जनमानस के,

रहट, कुदाल ,फावड़ों के स्वर, लगते मनभावन से ,

एक अजब सी मस्ती में , झूमें पलाश की डाली । 

फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।


 खिला चाँद यूँ लगे गगन में, दूल्हा हो भूतल का,

 बेला औ गेंदा मानो, बूटें हों धरती के आँचल का,

तारों की बारात मनाये, बिन मौसम दीवाली ।

फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।


पीले फूल लगें सरसों के, हों परिधान प्रिया का,

चना ,मटर औ रहर फूलकर, हरते क्लेश जिया का ,

"आकुल" मन को अज़ब "प्रेरणा " देती गेहूँ की बाली ।

 फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।


फिर आया बसन्त का मौसम, फिर आई हरियाली ।

फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।



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