बसंत
बसंत
फिर आया बसंत का मौसम, फिर आई हरियाली ।
फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।
फिर कनेर की डाली ने, ओढ़ी है पीली चूनर,
प्रकृति का श्रृंगार कर रहे, मिल गुलाब औ केशर ।
महुआ की डाली पर गाती, बैठ कोयलें काली ।
फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।
बौर आम के पागल करते, तन -मन जनमानस के,
रहट, कुदाल ,फावड़ों के स्वर, लगते मनभावन से ,
एक अजब सी मस्ती में , झूमें पलाश की डाली ।
फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।
खिला चाँद यूँ लगे गगन में, दूल्हा हो भूतल का,
बेला औ गेंदा मानो, बूटें हों धरती के आँचल का,
तारों की बारात मनाये, बिन मौसम दीवाली ।
फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।
पीले फूल लगें सरसों के, हों परिधान प्रिया का,
चना ,मटर औ रहर फूलकर, हरते क्लेश जिया का ,
"आकुल" मन को अज़ब "प्रेरणा " देती गेहूँ की बाली ।
फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।
फिर आया बसन्त का मौसम, फिर आई हरियाली ।
फिर धरती के मुखड़े पर, छाई यौवन की लाली।।
