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Vishwa Prakash Gaur

Others

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Vishwa Prakash Gaur

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मैं

मैं

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मैं शहर दर शहर बस भटकता रहा,

मन की तृष्णा वहीं की वहीं रह गई। 

हाट में मोल दर मोल होता रहा,

मेरी अपनी चमक फीकी सी रह गई।

हौसले मेरे फौलाद जैसे मगर,

उम्र नदियां के पानी सी बह बह गई।



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