तू ऐसी क्यूँ है माँ
तू ऐसी क्यूँ है माँ
क्यूँ मैं तुझको राजा लगता,
क्यूँ मैं लगता हीरो,
क्यूँ मैं लगता सबसे अच्छा,
चाहे अव्वल या जीरो।
दुनिया की सबसे ऊँचे ओहदे पर,
हर पल मुझे बिठाए,
सारी सृष्टि का मैं राजा,
कहकर ये इतराए।
बंद आँखों, हिलते होंठों से,
दुआ ही करती जाए,
किस मंतर जादू से माँ तू,
हर बला को दूर भगाए।
धुल भरे चेहरे पे जब तू,
प्यार की मोहर लगाती है,
मेरा दुखड़ा सुनकर माँ तू ,
अपन भूल ही जाती है।
क्यूँ मेरी आँखों के सपने,
तेरी आँखों में रहते,
चोट मुझे लगती है पर,
नैना तेरे दर्द हैं सहते।
क्यूँ मेरी साँसों से हरदम,
तेरी धड़कन चलती है,
क्यूँ सारी दुनिया की जन्नत,
मुझमें तुझको दिखती है।
मुझको ही तू देख के जीती,
मुझे देख मुस्काती है,
छोटी सी एक जीत को सुनकर,
सारा जग पा जाती है।
चाहे कुछ भी दुनिया बोले,
मेरी ही बात को सच माने,
मेरे मन को झट पढ़ लेती,
और कोई जाने या न जाने।
देखे मेरे चेहरे को जब,
अपने तो गम भूल ही जाए,
मैं जीतूँ या जब मैं हारूं,
तेरी आँखे छलक ही जाएँ।
