मोबाइल
मोबाइल
वो दिन भी क्या दिन थे
जब घर में मोबाइल नहीं थे।
सब आराम से बैठा करते थे
खूब मौज मस्ती सब करते थे।
बच्चों के खेल निराले थे
सबके अपने अपने पाले थे।
सब आपस में बतियाते थे
घर की रौनक बढ़ाते थे।
कोई कहीं ना अकेला था
आस पड़ौस का मेला था।
जब से यह मोबाइल आया
दुनिया को बस बदला पाया।
रिश्ते अब नाम के रह गए
हैलो ! हाय ! में ही खो गए।
दुनिया से नाता जोड़ दिया
अपनों से नाता तोड़ दिया।
जो स्वाद चिट्ठी में आता था
वो मोबाइल में है नहीं आता।
फिर भी एक बात निराली है
मोबाइल की दुनिया अलबेली है।
विदेश बैठे का साथी अनमोल
ढेरों बातें, पैसे मानों बेमोल।
जरूरी बात झट से कह पाएँ
चाहे बाद में घंटों बतियाएँ।
बात जब वाहट्सअप की आती
अगली पिछली सब भूल जाती।
यहाँ आकर मोबाइल मन को भाया
सब का हाल चाल मिल पाया।
हर रोज नया सीखने को मिल जाता
कुछ ज्ञान अपना भी बढ़ जाता।
समय के साथ देता हमें अपडेटस
हमें भी रखता अपटूडेट।
अधिकता हर चीज की होती है बुरी
जरूरत के अनुसार स्वयं चुन लो घड़ी।
कब क्या करना है यह स्वयं पर निर्भर
सही गलत सब हो जाएगा बेहतर।