माँ की बेटी
माँ की बेटी
क्यों कहते हैं लोग कि मैं बड़ी हूँ,
अभी ही तो उठकर खड़ी हूँ मैं।
क्यों कहते हैं लोग अपने पैरों पर खड़ी हूँ मैं,
आज भी तुम्हारे गाभन की कली हूँ मैं
क्यों कहते हैं लोग उड़ रही हूँ मैं,
अपनों के ही ख्वाब हकीकत कर रही हूँ मैं।
क्यों लोगों के कथन पर तुमने बात मान ली,
अपनी लाडली का दामन दूसरे के हाथ थाम दी।
क्यों किया माँ तुमने कन्यादान मेरा,
क्यों नहीं रख पायी मेरी इच्छा का मान ओ मान ?
क्या लगता मां तुझे वो मुझे तुझ सा प्यार दे पाएंगे,
वो जितना भी कहले पर तुम सा ना दे पाएंगे।
बेटी कहकर ले जायेंगे, बहू बना कर मिटायेंगे,
मेरी हाथ की रोटी वो, चबा-चबा कर खायेंगे,
तुझको लड़ने आयेंगे गाड़ी, गहना मंगवायेंगे
मेरी कमाई खाकर भी वो मुझ पर आग लगायेंगे।
ना जाऊंगी मैं ससुराल ओ मां तुम मेरी बातें सुन लो,
ना करोगी ब्याह मेरा जाकर उनसे ये कह दो।
ना बेटी ना बेटा सिर्फ तुमने दोनो सा पाला है,
ना छोड़कर जाऊंगी फैसला मैंने कर डाला है।
मां मेरी चिंता तू मत कर, तेरे बिन ना मैं रह पाऊंगी,
तुझे छोड़ ना जाऊंगी, मैं मायके में मर जाऊंगी।
यही चाह है ओ मेरी मां मैं कभी ना ब्याह रचाऊंगी,
कभी ना ब्याह रचाऊंगी।