औरत
औरत
पति प्रेम सुधा की प्यासी हूँ मैं,
तेरे घर आंगन की वाशी हूँ मैं।
तु समझे कल की बासी हूँ मैं,
गंगा यमुना की काशी हूँ मैं।
ना समझो तुम बेचारी हूँ मैं ,
इक मैं दस ,सौ पर भारी हूँ मैं।
तेरे ही घर को सवारी हूँ मैं,
पर आज भी तुझे ना प्यारी हूँ मैं।
ना समझ मुझे तु दासी हूँ मैं,
मां दुर्गा की नक्काशी हूँ मैं।
तेरा ही भाग्य सवारी हूँ मैं,
बन लक्ष्मी, सावित्री पधारी हूँ मैं।
तेरा आधा अंग धारी हूँ मैं,
बच्चो की माता प्यारी हूँ मैं।
तु समझे घर की तरकारी हूँ मैं ,
पर तुझपर वारी न्यारी हूँ मैं।
तेरे अपमान का ठोकर खारी हूँ मैं,
पर भी तेरा संग निभारी हूँ मैं।
तु समझे की बेकारी हूँ भै ,
अरे ! मैं जननी जगतारी हूँ मैं।
तेरे राहो की सहगामी हूँ मैं,
तेरे अंगो की रखवारी हूँ मैं।
तेरी बहनो की संगवारी हूँ मैं,
तेरे भाई को मा सी प्यारी हूँ मैं।
फिर भी तुझको क्यों नहीं प्यारी हूँ मैं,
फिर भी तुझको क्यों नहीं प्यारी हूँ मैं ?
तेरे आंगन की फूलवारी हूँ मैं,
तेरे बच्चो की महतारी हूँ मैं।
तेरे मां पापा की बहू
बेटी प्यारी हूँ मैं ,
अरे देख मुझे तेरी किस्मत
कितनी सवारी हूँ मैं।
देख मुझे तेरी नारी हूँ मैं,
फिर भी तुझको
क्यों ना प्यारी हूँ मैं ?
तुझको क्यो ना प्यारी हूँ मैं ?