वो काँपते हाथ
वो काँपते हाथ
होली की वो शाम
जब चारों तरफ था खुशियों का ही नाम
वो आई गुलाल लगाने मुझे
पर दिखी नहीं चेहरे पर मुस्कान !
स्वस्थ थीं वो पूर्ण रूप से
सजी हुई थी कुछ कम न थी
पर उनके सजे चेहरे पर
एक अनकही मायूसी भी थी।
मैं सोच रही थी उनके घर जाने की
पुराने सिकवे सब मिटाने की
तब तक मां ने दी आवाज
"देखो, मिलने आया हैं कोई खास !"
खुश थी मैं कि चलो
उनको आई तो मेरी याद
हम तो कर रहे थे बैठे
ईश्वर से फरियाद
दूरियां मिटा दो सबकी
भरदो सब में उन्माद
आखिरकार आज होली है
प्यार और खुशी का त्यौहार !
वो पास भी आयीं
और गुलाल भी लगाया
मगर ये मुझको बिल्कुल न भाया
क्योंकि उनका हृदय था घायल
यह मुझे तब समझ में आया
जब मैंने उन पर ज़रा गौर फरमाया।
उनके हाथों में एक अजीब सी कंपकंपी थी
जो उनकी बदस्थिती बयां कर रही थी
मेरे हृदय को द्रवित कर रही थी
मगर डर से मै पूछ नहीं सकी थी
उनकी आंखों में शायद नमी भी छिपी थी।
उन्होंने गुलाल भी लगाया
टीका भी लगाया आशीर्वाद दिया
की खुशियों का हमेशा रहे साया
मगर उनकी हाथों ने पता नहीं क्या किया
मेरा तो चैन ही खो गया !
उन थार्थाराथी हाथों ने
कई सवाल खड़े कर दिए
कैसे बताऊं कि मुझे बेहाल कर दिए
क्या थीं वो किसी मुसीबत में ?
या हुआ था विश्वासघात !
वजह जो भी हो मगर थीं वो आघात।
होगी कोई समस्या बड़ी
कहती है मेरी अंतःस्थिति
पर मुझे हो रही है पीड़ा बड़ी
कि मैं कुछ भी नहीं कर सकी
लगा कुछ गलत हो रहा या होने वाला है
एक बहुत बड़ा तूफान आने वाला है !
हो चाहे जो कुछ भी
पर रहें सब सुरक्षित
यही आशा लिए मैं हूं लिख रही
खुदा दे उनका साथ यह दुआ कर रही !
हो सकता है उनका स्वास्थ्य हो अनुचित
हो सकता है उन्हें डर लग रहा होगा अनिश्चित
हो सकता है उनके हृदय में कोई भार हो अंकित
उनका व्यवहार कर रहा था सुनिश्चित
उन्हें चाहिए एक सच्चा मित
जिसे सुना सके वो अपना हृदय गीत।
सबसे अजीब लगा मुझे यह जानकर
किसी ने ध्यान ही नहीं दिया इस बात पर
उनके कांपते हाथों को किसी ने देखा ही नहीं
जिसे देख मेरा चैन मेरे पास रह सका ही नहीं !
क्या मुझे हुई थी कोई गलतफहमी ?
यह मेरा ज़मीर मानेगा हीं नहीं
मैंने देखा था उनकी कांपती हांथों को
जब बढ़े थे वो मेरी ओर टीका लगाने को !
पढ़ा था मैंने उनकी खामोशी को
उनके चेहरे पर छाई अज़ीब उदासी को
जिसे छिपाने की कोशिश भी करी नहीं
शायद उन्हें पता था किसी का ध्यान हीं नहीं !
उस रंगों में छिपे चेहरे की
बेरंग दुनिया मुझे दिखी !
खुशियां बांट रही बोली की
बेजुबानी भी दिखी !
क्या करूं उनके लिए, मैं समझ ना सकी !
किस समस्या में हैं वो
यह भी पता ना कर सकी !
अफ़सोस है मुझे मैं कुछ ना कर सकी
मगर अभी तक हैरान हो रही !
मुझे जैसी छोटी बच्ची को जो गम दिखी
वो उन बड़े लोगों को क्यों न दिखी !