एक दुर्घटना
एक दुर्घटना
एक भूली हुई बात आज याद कर रही हूं
वो दर्दनाक बातें बयां कर रही हूं
थी एक छोटी सी बच्ची मगर समझदार समझती थी
अपनी नादानियों को मैं आम बात समझती थी
लगता था मुझसे कोई बुद्धिमान नही है
पर मुझ सा नादान कोई नही है
सोचती थी पूरी दुनिया को जानती हूं
उस दिन था जाना कितनी बेगानी हूं
दुनिया से तो मैं बिल्कुल अनजानी हूं।
गुरुर था खुद के स्वभाव पर मुझे
विश्वास था खुद के सदभाव पर मुझे
सोचती थी कुछ बुरा न हो सकता
आखिर मेरे संग है सभी फरिस्ता।
ये भी लगता था कि अब बड़ी हो गई
अपने सभी फैसले ले सकती हूं अभी
क्यों मुझे कहे बच्ची कहे
आखिर मैं हूं तेज सबसे!
सबकी नज़रों में बड़ी बनना चाहती थी
एक आज़ाद पारी बनना चाहती थी
अपने ख्वाबों में लगी कड़ी तोड़ना चाहती थी
बनकर एक घड़ी बस बढ़ना चाहती थी
उड़ना चाहती थी हौसलों के दम पर
चहकना चाहती थी शिक्षा के बल पर।
उस दिन जाना किसी का कोई मोल नहीं
गर मासूमियत में तो वो अनमोल नही
वो एक ऐसी वस्तु है जिसे सब प्रयोग करे
अनजाने मे ही मुसीबतें आमंत्रित करे
एक बच्चा भी जिसके साथ
छल कर सके
वो मूर्ख है, कोई उसे सायना क्यों कहे?
हुआ था मेरे साथ भी कुछ ऐसा हीं
समझती थी मुझसा कोई चतुर नहीं
हुई जब शिकार एक दुर्घटना की मैं
तब जाना कितनी नादान हूं मैं!
मूर्ख बनी थी मैं, मगर किसी वयस्क से नहीं
एक छोटे बच्चे से जो था किशोर भी नही!
हृदय पर हुआ था बहुत बड़ा आघात
मस्तिष्क तैयार न था मानने को ये बात
कि हो गया मेरे साथ कुछ ऐसा
जिसे मैंने कभी सपने में भी न हो सोचा।
पहले तो दिमाग ने सत्य को झुठलाना चाहा
मगर तर्क वितर्क कर बहुत घबराया
लेख पढ़े, आलेख पढ़े, घटनाएं पढ़ी, भाषणे सुनी
पूरी की पूरी गूगल छान गई
मगर मुझ पर जो बीता था कहीं न मिली
ऐसी घटना क्या पूरे संसार में
सबसे पहले मेरे साथ ही घाटी ?
मूर्ख नहीं महामूर्ख थी मैं
ये समझने में पूरा दिन बीत गई
धीरे धीरे जब सूर्य की किरणे दूर जाने लगी
अंधेरी घाटा आसमां में छाने लगी
रात्रि अपनी प्रचंडता दिखाने लगी
ग्रीष्म ऋतू अपना कहर ढाने लगी
तब दिमाग भी थकने लगी
मानने लगा कि वह गया था ठगा
सच्चाई को अपनाने लगा
अपनी हार पर पछताने लगा।