क्या करूं कुछ समझ नहीं आता
क्या करूं कुछ समझ नहीं आता
क्या करूं मैं कुछ समझ नहीं आता
मन यूंही बैठे बैठे पछताता!
हर एक सवेरा नया तूफ़ान लाता है
सूर्य मुझे कहीं नज़र ना आता है।
क्या हो रहा है आजकल समझ नहीं आता
पर फिर भी दिल है बहुत घबराता!
लगता है घटा छा गई हो आसमा में
प्रकाश का उजाला कहीं नज़र नहीं आता!
लोग कहते हैं कि प्यार करतें हैं मुझसे
पर कुछ ऐसा नहीं छोड़ते जिससे दिल ना टूटे
हर एक पल सताते हैं मुझे
सोंचतें हैं शायद मिटा देंगे मुझे!
हर ग़लती की सजा मिल गई है मुझे
ना जाने कितने लोग हैं रूठे
अब मनाने की इच्छा भी नहीं
क्यूंकि वो लोग अपने कभी थे हीं नहीं!
हर कार्य का अपना महत्व होता है,
तो फिर कुछ ग़लत क्यों होता है?
दिन बीतते इतना समय लगता है
दिल टूटते वक्त ना लगता है!
एक अनहोनी क्या हो गई
दुनिया हीं पलट गई
खुशियां सारी छटक गईं
आंसु की नहर बही
दिल टूट जो गया, दोस्त छूट हीं गया
परिवार रूठ गया, विश्वास टूट गया!
अश्रु धरा बहे और हृदय ये कहे
तू यहां क्यों रहे, चली जा समय से परे!
जहां कोई इन्सान ना रहे, कोई कुछ ना कहे
जब जी तेरा भरे तो आ जाना प्रिये!
प्रत्येक अश्रु बहुत कीमती है सखी,
पुरानी यादों को क्यों ना भूल सकी?
इस संसार में कोई अपना नहीं,
जितनी जल्दी समझोगी उतनी मिलेगी ख़ुशी!
मेरे हालात ऐसे हैं कि मैं क्या करूं!
मेरी हालत ये कैसी है, कि मैं सब कुछ सहुं!
इस पृथ्वी पर रहकर भी मैं ना रहूं,
इस दुनिया से भला मैं क्या कहूं!
जब अपने लोगों ने हीं घायल है किया
फिर उम्मीद का कैसे जलाऊं मैं दिया!
लोग कहते हैं कि तुम अलग हो प्रिया
तुमने आखिर ये सब कैसे किया!
आकांक्षाओं का एक समंदर हूं मैं
खुशियों का एक बवंडर हूं मैं
हौसलों का सिकंदर हूं मैं
संकल्पों का अंबार हूं मैं!
रोना तो मुझे जन्म ने सिखाया
पर हंसना मुझे खुद से आया!
लोगों ने तो पूरा कानून ही बताया
पर ये संसार मुझको बिल्कुल ना भाया!
धीरे धीरे मैं जैसे बड़ी हुई
खुशियां चली गईं मैं लड़की बन गई
प्रेम और शांति का पात्र बन गई
न जाने ये धरती कैसी बदल गई !
सोचती हूं मैं कभी
उडूंगी कहीं न कहीं
जाऊंगी किसी नई
जगह पर हीं सही
जहां कोई बंधन नहीं
केवल हो खुशी हीं खुशी !