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Kanchan Prabha

Tragedy

4.5  

Kanchan Prabha

Tragedy

काला वक्त

काला वक्त

1 min
400


गर्मियों की चिलचिलाती धूप मेें 

शहर मेें बरपा सन्नाटा था

लोग छुपे थे अपने घर मेें 

हॉस्पिटल मरीजों से पटा था


बेड की कमी थी ऐसी आई

सबके चेहरों पर उदासी छाई

कितनी भयानक साल था आया

लोगों के मन भय था समाया


खिड़की सारे बन्द पड़े थे

लाशो से शमशान भरे थे

आक्सीजन की कमी थी आई

सबकी आँखों में नमी समाई


बड़ा भयावह रूप दिखाया

देश पर भारी सा संकट छाया

लोग कर रहे उपाये अनोखे

कोरोना फिर भी देता धोखे


अपनो से मिलना हुआ मुश्किल

बन्द विद्यालय दुकानें भी सील

किस वस्तु में छिपा कोरोना 

सब्जी को भी खूब है धोना


इन्सान कुछ ऐसे भी पागल

मास्क ना लगाते एक भी पल

कितना सबको समझाए कोई

बाहर मत जा अम्मा भी रोई


आखिर कितना करे सरकार

कुछ समझो ऐ जनता भी यार

काश कोरोना जल्दी भागे

तोड़ के सबसे वायरस के धागे


जिसने इतने जीवन किये बर्बाद

हर साल मनहूस आयेगी याद

वो जो काले दिन थे साथ

बहुत भयावह थी वो रात।


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