अजनबी
अजनबी
अजनबी ही बने रहें हमेशा उनकी निगाहों में
माँगा था जिन्हें हमने अपनी दुआओं में।
निर्मोही जमाना भी हाल-ए-दिल समझता नहीं,
क्यों आँखों में उनकी दर्द का पैमाना छलकता नहीं।
बिखर गये हम सूखे पत्तों की तरह कोई शिकवा किए बिना,
बेदर्द बन वो मुस्काते रहे कोई जिरह किए बिना।
अरमान उन्हें अपना बनाने का दिल में संजोते रहे,
वो हमारे अरमानों का खिलौना बना कर खेलते रहे।
उन्हीं की इनायत है कि मुझे खुद से भी अनजाना बना दिया,
अजनबी ही रहते तो अच्छा था तुझे जानने की कीमत ने मुझे फना बना दिया।
मेरे हर अल्फाज में शामिल हैं वो नगमें बनकर,
टूट न जाये ये ख्वाब कहीं बीते लम्हे बनकर।
क्यों हर मोड़ पे उनका इंतजार रहता है,
शायद उनसे हमारा कई जन्मों का रिश्ता है।