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ATAL KASHYAP

Tragedy

4  

ATAL KASHYAP

Tragedy

समझाईश

समझाईश

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उन्मुक्त जिदंगी की चाह 

कुछ उसे 

यूँ ले डूबी,

थी उमर पच्चीस की 

पैंतीस टुकड़ों में 

फ्रिज में बटी देखी,

न मानी समझाईश 

माँ-बाप की,

बस प्यार में पागल 

एक दरिन्दे को 

दिल दे बैठी,

छोड़ा शहर मोहल्ला 

तोड़ रिश्ते, 

लिव इन रिलेशन में रहने की 

भूल कर बैठी,

था वह सरफिरा 

शातिर बंदा, 

धीरे-धीरे उसे 

बात समझ आ बैठी,

न मिल सका उसे मौका 

भूल सुधार का,

उसकी कहानी 

सीख दे बैठी,

मानती बात 

यदि माँ-बाप की तो, 

काया उसकी 

टुकड़ों में न कटी होती।

        


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