नींद
नींद
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आती थी नींद गहरी
बचपन में
न चिंताओं का ढेरा था,
न था कुछ
खोने का डर
न कुछ पाने का झमेला था,
फिर हुए
किशोर
चारों तरफ ख्वाहिशों का शोर था,
हुई थोड़ी नींद कम
अब उन्हें
पूरा करने का जोर था,
पड़ते-भागते
आया प्रौढ़ावस्था का दौर,
समझ न आ रहा था
जायें किस ओर,
बस भागते जा रहे थे,
कल की चिंता में
नींद गंवाते जा रहे थे,
आयी अंत में
मरने की घड़ी,
आयी मौत
पर न आयी
बैरन नींद की घड़ी।
