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ATAL KASHYAP

Others

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ATAL KASHYAP

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नींद

नींद

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आती थी नींद गहरी 

बचपन में

न चिंताओं का ढेरा था,

न था कुछ 

खोने का डर 

न कुछ पाने का झमेला था,

फिर हुए 

किशोर 

चारों तरफ ख्वाहिशों का शोर था,

हुई थोड़ी नींद कम

अब उन्हें 

पूरा करने का जोर था,

पड़ते-भागते 

आया प्रौढ़ावस्था का दौर,

समझ न आ रहा था 

जायें किस ओर,

बस भागते जा रहे थे,

कल की चिंता में 

नींद गंवाते जा रहे थे,

आयी अंत में 

मरने की घड़ी, 

आयी मौत

पर न आयी 

बैरन नींद की घड़ी। 

       


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