सैक्स-वर्कर
सैक्स-वर्कर
चश्मा इंसानियत का चढ़ा कर एक सैक्स-वर्कर को टटोला था,
छल्ले धुएं के उड़ाते और हलक से शराब के घूँट उतारते
अपने दर्द को मेरे सामने उड़ेला था, पसीजा था मेरा कलेजा भी
उसकी कहानी सुनकर मजबूरियों ने उसे दलदल में धकेला था,
थे उसे भी जिंदगी से शिकवे-शिकायतें पर चेहरे पर फीकी हँसी को ओढ़ा था,
पूछा जब मैंने उससे यूँ ही है देह व्यापार गंदा क्यों हाथ इसमें डाला था,
पैसा कमाने के दूसरे पहलू पर क्यों विचार नहीं आया था,
था उसका तर्क सटीक धीरे से कह डाला था,
करते रहे शरीर का सौदा जब जमीर बेचकर पैसा कमाते हुजूम नजर आया था।
