सपना या हकीकत
सपना या हकीकत
सपने में भी न सोच सकूँ
वो सपना आँखों में सज ही गया।
खुद को कोसता फिरूँ मैं फिर
सपने में भले पर उसके बारे ऐसा सोच भी कैसे लिया?
ताज्जुब बस इक बात का है
वो सपना आख़िर सच हो ही गया।
खैर कुछ प्यारे पल भी बिताए मैंने
जब उसका सपनों में आना जाना हो ही गया।
हाथ थाम कर झूमते फिरते
उसके घर भी तो आना जाना हो ही गया।
हकीकत से भी कुछ पल उठाऊँ अगर
तो पाँचवाँ चाँद भी समझो लग ही गया।
प्यारी वो उसकी बातें भी प्यारी
उसकी आवाज़ से भी प्यार हो ही गया।
हर्ष ! सुनो !! या सुनो ! हर्ष!! जब भी सुनता
मुख पर कुछ अलग सा चमक आ ही गया।
सुनो ! सुनो !! सुनो !!! हर्ष!!?!जब भी सुनता
चेहरे पर कुछ अलग सा नूर छा ही गया।
पर आँखों से आँसू तो फिर भी आ ही गए
जिसे अपना पाया रात को सुबह खो ही दिया।
आँखों से आँसू तो फिर भी आ ही गए
जिसे अपना पाया सपनों में हकीकत में खो ही दिया।

