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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

"आस्तीन में इंसान"

"आस्तीन में इंसान"

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आस्तीन में छिपे हुए, बहुत ही सांप है

एक ढूंढोगे, मिलेंगे कई इंसानी नाग है

जिनपर हमको खुद से ज्यादा यकीन,

वही लोग हमको डसते सुबह-शाम है


बेचारे विषधर तो ऐसे ही बदनाम है

ज्यादा जहरीले तो इंसानी दिमाग है

वो बिरादरी को डसते बिना काम है

सर्प रक्षा हेतु, लेता डसकर इंतकाम है


अब से आस्तीन के सांप कहना छोड़ो

अब से कहो, आस्तीन में दुष्ट इंसान है

जो मतलब के लिये डसता, आठोयाम है

ऐसे आस्तीन इंसानों की करो, पहचान है


सांप के तो बेचारे, एक जगह विष थैली है

बदनीयत इंसानों की तो रग-रग ही मैली है

वो इंसान नही, इंसान वेश धरे हुए शैतान है

जो भला करनेवालों के काटते रहते कान है


जो अपना ही खाकर अपनी बुराई करता

ऐसे दुष्टों पर लाठी मारने का करो काम है

न तो वो दिन दूर, नही, कहावत होगी आम है

आस्तीन में सांप नही, इसमें होते इंसान है



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