यादों की किताब
यादों की किताब
कल आई वो नींद में बनके एक ख्वाब,
खोली अलमारी दिल की थमाई यादों की किताब।
फरोली जब किताब मैंने होकर थोड़ा बेताब,
हर पन्ने पर किया उसकी तसवीर ने आदाब।
देखा उसकी तरफ जो जानने इसका राज़,
आँखों में उसके आँसू नाजाने किस बात पर नाराज़।
रोते हुए फिर उसने किया प्यार का इज़हार,
मैंने कभी ना बोला कुछ बस इस बात का एतराज़।
नींद खुली तभी टूट गया ख़्वाब,
किस्सा एक और हुआ अंकित इन यादों की किताब।
