दोहा छंद
दोहा छंद
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अति कोप कदी न कीजे, दंभ भी टूट जाय।
जो हृदय से रहें नम्र, प्रभु को निकट पाय।।
मन में जो रखता दया, वह मानव कहलाय।
नित ऐसे ही कर्म से, जीवन सफल बनाय।।
धन की रखो न गाँठरी, कोई सँजो न पाय।
धन तो बस बांटे बढ़े, जो जोहे लुट जाय।।
समय चक्र जो घूमता, राजा रंक कहाय।
मिट्टी से मानुष बना, मिट्टी में मिल जाय।।
भव-जाल के बंधन में, हर मानुष फँस जाय।
लोभ मोह जो त्याग दे, वो साधक बन जाय।।