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Sandarbh Maurya

Abstract

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Sandarbh Maurya

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किसान

किसान

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कितना मासूम हूं कि हर गलतियों को माफ कर देता हूं,

सौदा बिक जाए समूचा बस इसी आस है, सब सह लेता हूं,

तुम कर रहे अपने मुनाफे की बात मेरे ही सामने,

लाचार हूं तभी तो जरूरत के आगे अपनी आंखे मूंद लेता हूं ।


बहुत सी किताबे तो नहीं पढ़ी, कभी फुर्सत ही नहीं मिली,

बस गिनतियां सीखी, अढ़ैया शेर किलो का हिसाब सीखा,

भला कुछ भी नहीं आता हो, मगर ये जानना पड़ता है,

कितना हुआ सूद,मूल पे, ये जरूर सीखना पड़ता है ।


कभी देखा है बड़े साहब को कोई तेज आवाज में बोले,

किसमें है हिमाकत इतनी कि अदना सा किसान उनके आगे बोले,

हम खुद समझते है, यही किस्मत है हमारी,

जिनको खुली आंखो से नहीं दिखता, उनसे भला कोई क्यू जाके बोले।


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