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Noorussaba Shayan

Abstract

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Noorussaba Shayan

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अब भी तुम साथ हो

अब भी तुम साथ हो

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तुम साथ हो न हो, कोई फ़र्क़ नहीं

तुम हो मेरे साथ, है मुझे ये यक़ीन।


महसूस करती हूँ मैं तुम्हें हर पल हर लम्हा हर घडी 

अरसा गुज़र गया तुम्हे देखे, खलती है यही एक कमी।


अब भी होते हो तुम साथ चाय की चुस्कियुओं में 

 तुम्हारी पसंद शामिल है खाने की सब्ज़ियों में।


अब भी तुमसे ही पूछती हूँ, कौन सी साड़ी सजती है मुझ पर

अब भी तुम ही बताते हो कौन सी लाली खिलती है मुझ पर।


खुले बाल जो गलती से छत पर चली जाओं,

प्यार भरी आँखें तुम ही दिखाते हो

ख्वामख्वाह जो यूँ ही रूठ जाओं 

प्यार से मुझको तुम ही मनाते हो।


सुकून भरी हो नींद इसलिए

लगाती हूँ अब भी दो बिस्तर

तुम्हारे एहसास की खातिर 

ओढ़ लेती हूँ तुम्हारी चादर।


पर सोती में तन्हा ही हूँ

और होती मैं तन्हा ही हूँ।


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