काश
काश
काश !
काश मैं एक ख्वाब होती,
हमेशा तेरी आँखों में रहती।
या फिर एक सुरीली,
ग़ज़ जिसे तेरी आवाज़,
मिलती या फिर,
एक मीठी मुस्कान,
जो तेरे होठों पे खिलती।
पर इस जुस्तजु-ए-ज़िन्दगी में,
ख्वाब ग़ज़ल की ज़रुरत ही किसे,
ज़रुरत है तो बस एक,
नगीने की जो ऊँगली में सजे।
एक सितारे की
जो ज़िन्दगी रोशन करे,
एक तस्वीर की,
जो बाज़ार में बिके।

