रफ्तार
रफ्तार
क्या रफ्तार ज़रूरी थी
ऐसी क्या मजबूरी थी
क्या ख्वाहिशें सच में अधूरी थी
या अराइशें ख़ुद की कमज़ोरी थी
ये चलता फिरता एक शरारा
रगों में दौड़ता ख़ून हमारा
इसी से हमारा वुजूद है
हमारे होने का सुबूत है
रफ्तार ही तो पहचान है
जैसे परिंदों में उड़ान है
जैसे हिरनी भर्ती दौड़ है
जंगल में नाचता मोर है
जैसे दरिया झरने बहते है
बादल गरजते बरसते हैं
ज़मीन घूमे सूरज के इर्द गिर्द
चाँद भी घूमे उसी की मानिंद
हवा भी चलती रहती है
कभी रुकती न ठहरती है
सच है चलना ही ज़िन्दगानी है
ठहरे तो बस ख़त्म ये कहानी है
रफ्तार तो सब की ज़रूर है
पर सब की रफ्तार मुक़र्रर है
ठंडी गर्म सांसें, दिल की धड़कन
सागर की लहरें, बादल की गर्जन
कछुए की चाल, चीते की छलांग
सब की है अपनी अपनी रफ्तार
न कोई किसी से आगे न कोई पीछे
न कोई ऊपर न कोई किसी से नीचे
न जाने क्यूँ इंसान ही है बेचैन परेशान
क्या नहीं समझता क़ुदरत का निज़ाम
क्यूँ हो भला सबसे तेज़ उसकी रफ्तार
इस भागम भाग का देखो ये है अंजाम
न सुकूँ न खुशी बस बेचैनी ही बेचैनी हर तरफ
इक चीज़ मिली नही दूसरे की की अरज़
अव्वल आने की दौड़ है बच्चों में मासूमियत कहाँ
गाड़ी बंगले की हौड़ है लोगों में इंसानियत कहाँ
चाँद, तारे ,बादल,झरने अब वो तसव्वुरात कहाँ
किसी का हाथ थामे साहिल पे टहले ऐसे लम्हात कहाँ
ख़ुद का सुकून औरों की परवाह कर लो इसे ज़िन्दगी में शामिल
मुख्तसर से इस सफर को बना लो हसीन और कामिल।