Noorussaba Shayan

Abstract

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Noorussaba Shayan

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दिल का आईना

दिल का आईना

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आंखें मेरी मेरा दिल का आईना थी

बिना कहे सब कह देना का बहाना थी

सितारे सी चमक जाती हर छोटी सी खुशी में

बुझी बुझी सी रहती जो किसी बात पे रूठी मैं


लाल डोरे आंखों के गुस्सा बख़ूबी ज़ाहिर करते

गुलाबी सी दिखती जो कभी हया के रंग उतर आते

आंखें मेरी मेरे दिल का आईना थी

हर बात कह देना का ज़रिया थी मगर


आंखों की ये गुस्ताखियां हर किसी को मंज़ूर कहाँ

लबों पर हैँ पाबंदी तो आंखों को रज़ा का दस्तूर कहाँ

दिल के इस आईने पर अब पर्दा लगाना ज़रूरी है

पलकों की ओट में आंखों का ख़ामोश रहना मजबूरी है


ये आँखे अब किसी से कुछ नही कहती

तमाशबीन की तरह बस ख़ामोश ही रहती

आँखें जो मेरे दिल का आईना थीं

कभी समंदर तो कभी सितारा थीं


अब सिर्फ दीद का बनी सहारा है

पलकों तले करती बस नज़ारा हैं।


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