ओ री लता!
ओ री लता!
सुनहरी, चमकीली, सुंदर पंखुड़ियां तेरी,
ओ री लता ! तुझपे भँवरे मंडराते होंंगे।
मृदुल रस कानो में तेरे,
कोई राग वे सुुनाते होंगे,
ओ री लता! तुझपे भँवरे मंडराते होंंगे।
कल गान के बहकावे मे लता तू आ जाती होगी,
मकरंद पान कर वे मदिर भँवरे उड़ जाते होंगे,
ओ री लता ! तुझपे भँवर मंंडराते होंंगे।
प्रणयातुर तू भी उन्हें बुुलाती होगी,
पर मदिर भँवरे तुझे बावली समझ चिढा़ते होंगे,
ओ री लता ! तुझपे भँवरे मंडराते होंंगे।
लज्जा के मारे तू भी अपनी कलिकाएँ
सम्पुटित कर लेती होगी,
मुरझा के गिर जाती होगी जब
लाख यत्न करने पर भी वे न आते होंगे,
ओ री लता ! तुझपे भँवरे मंडराते होंंगे।