अनकही सी मुलाकात
अनकही सी मुलाकात
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सर चढ़ी है एक अनकही सी मुलाकात,
ज़िन्दगी के धूप में
छांव बन कर घूम रही है
तुमसे हुुुई अनकही सी मुलाकात।
न तुम्हे जाना, न तुम्हे सुुना,
न पता तुम्हारा नाम,
हो गयी नैनों से ही अनकही सी मुलाकात।
न तुम कुुछ कहो, न हम कुुुछ कहे,
बस एक दूसरे को देेेखते रहें,
कट जाए यूँ ही ज़िन्दगी, रह जाए तो बस वही
अनकही सी मुलाकात।
गुलशन की फूल हो तुम,
सावन की बरसात हो तुम,
तुम क्या हो उसकी क्या बिसात,
मिटाये मिटती नहीं यादों से,
तुमसे हुुई अनकही सी मुलाकात।
तेरे साथ जीना, तेेेरे साथ मरना,
अब यही मेरा जीवन,
हम तुुम्हारे तुम मेरी हो सनम,
जबसे हुई तुमसे अनकही सी मुलाकात।