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Vishal Haikerwal

Abstract

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Vishal Haikerwal

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शायरी पे शायरी

शायरी पे शायरी

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नहीं है जिन्हें चाहत , उनके लिए ये मरी मरमरी..

जो है इसके क़ायल , उनके लिए कारीगरी ....

 

कोई कहता है इसे , एक उजड़ा हुआ ज़माना ...

तो कोई समझता है , इसे जीने का एक बहाना ......

 

किसी को लगता है कि, ये शौक़ उम्र दारो का ...

तो कोई समझता इसे , एक हुनर कलाकारो का ....

 

नहीं बर्दाश्त होती ये , कुछ पल भी किसी को ..

कोई समझ बैठा है , दुनिया बस इसी को ...

 

कुछ के लिए ये समुन्दर , जिसका पानी है बहुत खारा..

किसी के लिए ये सागर , जिसमें डूबा है जग सारा .....

 

कुछ के लिए शायर , है हारे हुए राही ..

कुछ के लिए है मसीहा , जिनका ख़ून बना है स्याही .....

 

शायरी कुछ और नहीं , जज़्बातों का एक दरिया है ..

पसंद करो या ना करो , बस अपना अपना नज़रिया है .


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