शायरी पे शायरी
शायरी पे शायरी


नहीं है जिन्हें चाहत , उनके लिए ये मरी मरमरी..
जो है इसके क़ायल , उनके लिए कारीगरी ....
कोई कहता है इसे , एक उजड़ा हुआ ज़माना ...
तो कोई समझता है , इसे जीने का एक बहाना ......
किसी को लगता है कि, ये शौक़ उम्र दारो का ...
तो कोई समझता इसे , एक हुनर कलाकारो का ....
नहीं बर्दाश्त होती ये , कुछ पल भी किसी को ..
कोई समझ बैठा है , दुनिया बस इसी को ...
कुछ के लिए ये समुन्दर , जिसका पानी है बहुत खारा..
किसी के लिए ये सागर , जिसमें डूबा है जग सारा .....
कुछ के लिए शायर , है हारे हुए राही ..
कुछ के लिए है मसीहा , जिनका ख़ून बना है स्याही .....
शायरी कुछ और नहीं , जज़्बातों का एक दरिया है ..
पसंद करो या ना करो , बस अपना अपना नज़रिया है .