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Vinay Sharma

Drama Tragedy

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Vinay Sharma

Drama Tragedy

आख़िरी कविता

आख़िरी कविता

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सच हमें पता था फिर भी सबके बोले गये झूठ को सच मानते गए

उनको लगा कि हमने तो इसको पागल बना दिया 

लेकिन हम थे जो अपनी मर्ज़ी से उनसे हारते गये

झूठ बोल के मन रखने से अच्छा है सच बोल दो 

दिल दुखेगा देख लेंगे लेकिन उसको छुपाने के लिए झूठ क्यों बोलना और दो 

नादान थे सब जो सोचते गए कि पागल हूँ

उन्हें पता नहीं था जिस पानी में वो तैर रहे है 

मैं उसी पानी से बना सागर हूँ

इस दुनिया ने उम्र से पहले इतना कुछ दिखा दिया 

निःशब्द हूँ कुछ कहने को मौन रहना सीखा दिया 

अब उम्मीद नहीं किसी से ना बचा भरोसा 

थोड़ी जो कमी रहे गई थी 

तो मुझे मीठे सा परोस दिया धोखा 

दुनिया बहुत बेरहम मैं आटा ये मेरे लिये घुन है 

ईमानदार सच्चा होना आज के वक़्त में जुर्म है 

जो बुरा वही भला सच्चा इंसान ना किसको हज़म है 

ये आख़िरी कविता मेरी 

क्योंकि मेरी तरह मौन हो चुकी मेरी क़लम है 


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