रुद्राली
रुद्राली
प्राचीन काल में मानव
सभ्यता का विकास
मेरे किनारे हुआ
उस वक्त में
जीवनदायिनी थी
समय बदला और
वक्त के साथ
मेरा स्वरूप भी
बदलता चलता गया
फिर मैं अलग-अलग
कबीलों, समुदाय को
बांटती थी
वैसे मेरा प्रवाह
अक्सर शांत और
कल-कल रहता था
पर वर्षाकाल के समय
मैं उफान मारती थी
ऐसे ही साल दर साल
दशक, शताब्दी बीतते
चले गए
और मेरे अनेक रूप
बनते गए
कभी किसी ने माँ माना
तो कभी बहन
कभी सखी-सहेली
कभी पवित्र पानी
अपने पाप धोने के लिए
मेरी शरण में आकर
हाथ जोड़कर मैल धोना
आदत बन गई लोगों की
मगर धीरे-धीरे
बढ़ता ही गया
मेरा दुरूपयोग
मेरा पानी लेकर
इस्तेमाल करना
तक तो ठीक था
पर फिर कचरा
डालना कतई
बर्दाश्त के बहार था
फिर मुझे अपनाना पड़ा
रौद्र रूप उन्हें एहसास
दिलाने के लिए
कि वो जो कर रहे
वो गलत है
ऐसा करते समय
मेरा भी दिल
रोने लगता था
मन करता था
रुद्राली बनने का
मेरे रौद्र रूप के कारण
कितना सब बर्बाद
हो गया
जिसे फलने-फूलने में
कई दशक लग गए
नष्ट होने में उसे
एक क्षण भी नहीं लगा
मैं नदी हो कर
इनके लिए
इतना सोचती हूँ
ये इंसान होकर
क्या अपने लिए
नहीं सोच सकते
पर फिर भी मनुष्य
कहाँ समझ रहा है कुछ
न पहले न अब
बस एक बिगड़ैल
बच्चे की तरह
सब कुछ बर्बाद
करता चला जा रहा है
आगे निकलने की होड़ में
अपना अस्तित्व मिटाता
जा रहा है अपने हाथों से
बस पीछे छोड़े जा रहा है
विनाश के निशान।