नदिया की धार
नदिया की धार
मैं नदिया की धार,
चंचल अविचल मझदार।
मैं ले लेती सबके पाप,
धोते मुझसे अपने कर्मकांड।
बहती चली मैं छोड़ तार,
मन का मैल देकर उधार।
कर स्नान बनते पुण्याधार,
मुझको देते निरुपम उपहार।
गंदगी कागज़ और कबाड़,
मैं उसको भी करती स्वीकार।
ले जाती सागर के पास,
दे कर के मीठा से पानी।
मांगू मैं बस ये उपकार,
मुझको भी समझो अपने सा।
रखो साफ स्वयं सा,
तुमसे मैं और मुझसे तुम।
हम तुम मिल कर बने यूँ,
न करो मुझको बदनाम।
बार,बार यूँ हर बार,
मुझको तो समझो एक बार।
मैं नदिया की धार,
चंचल अविचल मझदार।
