मेरा गाँव
मेरा गाँव
इक किस्सा सुनाया करती थी अकसर मेरी नानी
बहा करती थी मेरे भी गाँव मे नदी एक सुहानी
बहुत निकला करती थी कागज़ की नावें तब
भर -भर के ले जाती थी बच्चों की शैतानी
अब जहाँ से ये काला नाला निकलता है, यकीं मानो
बहुत मीठा हुआ करता था उस नदी का पानी
हर शाम लगते थे मेले पानी भरने के बहाने
उसी पहर आशिकों को भी थी रौनकें जमानी।
