STORYMIRROR

monika kakodia

Inspirational

2  

monika kakodia

Inspirational

परिवेश

परिवेश

1 min
114

अब भी वक़्त है कि सीलें जाएं

उजड़े हुए दश्त सभी

कभी यूँ ना हो बिकने लगें,

साँसे भी ऊँचे मकानों में

अपना जीव,अपनी स्वास,

अपने प्राण में हुए मस्त सभी

भावुकता, और संवेदना कहीं

कैद पड़े तहखानों में


आँगन में बिछा कर पक्की ईंट

बन गए सम्पन्न सभी

लगता है महकते फूल बचे हैं मात्र

कच्चे मकानों में

बन्द दरवाज़ों पर मिट्टी के डर से,

शीशे जड़ हुए स्वस्थ सभी

स्वास रोग ही ले गया,

मिलाने मिट्टी से अब श्मशानों में


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational