ऐ शाम
ऐ शाम
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ऐ शाम हमसे कुछ तो बोल
कुछ तो किरण की गिरहें खोल
शितिज खड़ा बाँहें फैलाये
धरा अड़िग है आस लगाए
प्यासे समंदर में नव रंग घोल
ऐ शाम हमसे कुछ तो बोल
पँछी हैं परदेस से लौटे
कल की नूतन आस को
औटे पिंजरों में कटे वो
पर भी खोल ऐ शाम
हमसे कुछ तो बोल