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monika kakodia

Others

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ऐ शाम

ऐ शाम

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ऐ शाम हमसे कुछ तो बोल

कुछ तो किरण की गिरहें खोल

शितिज खड़ा बाँहें फैलाये

धरा अड़िग है आस लगाए

प्यासे समंदर में नव रंग घोल

ऐ शाम हमसे कुछ तो बोल

पँछी हैं परदेस से लौटे

कल की नूतन आस को

औटे पिंजरों में कटे वो

पर भी खोल ऐ शाम

हमसे कुछ तो बोल


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