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Nitu Arora

Drama

3  

Nitu Arora

Drama

नदी की प्रार्थना

नदी की प्रार्थना

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कल-कल करती

छल-छल करती

मैं बहती जाती हूँ

शांत मेरा स्वभाव

ना करती किसी से भेदभाव।


कंकड़, मिट्टी, पत्थर

हर कोई मुझ में समा जाता

निर्मल पावन जल हैं मेरा

हर कोई प्यास बुझाता।


लेकिन अब मैं उदास रहती हूँ

हर कोई मुझको गन्दा करता

फैक्टरी का केमिकल

मुझको जहरीला करता।


आदमी खुद तो फ़िल्टर पानी पीता

जानवर का तो मैं ही सहारा 

मेरे अंदर पल रहे जीव जंतु मर रहे

ये देख मेरे आंसू निकल रहे।


बाढ़ का फिर रूप धरा

मुझको ही लोगों ने बुरा कहा

खुद का कर्तव्य नही समझ रहे

मुझको प्रदूषित कर रहे।


मैं नदी हाथ जोड़ करू प्राथना

बन्द करो मुझको गन्दा करना

जीव जंतु पर तरस करना

प्रकृति के नियमों का पालन करना

मेरे जल को साफ रखना।


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