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नविता यादव

Drama

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नविता यादव

Drama

चला मंजिल की ओर

चला मंजिल की ओर

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पंख लग गए आज साइकिल को

हजारों मिलों दूर निकल पड़ी अपने ठिकाने को

धूप हवा आंधी तूफ़ानों से आत्मसात हो

निकल पड़े अपनी सांस बचाने को

पंख लग गए आज साइकिल को।


कुदरत का ये कैसा कहर टूटा

बंद है आज हर इंसान अपनी जान बचाने को

कहीं कोई दरवाजे भी खुुुंलेे है

धरती पे "देवदूत " सुरक्षा हेतु दिन रात खडे़ हैं

पर ये कैसी कसमकश आन पड़ी

हर प्रवासी मजदूर निकल पड़ा अपनी सांस बचाने को

पंख लग गए आज साइकिल को।


खाना नहीं पिना नहीं सोने को बिछौना नहीं

रोज़ी रोटी से साथ छूटा हर मजदूर है आज रूठा रुठा

साथ ले अपनों कोअपनो की ओर चला

उम्मीद का दामन थाम निकल पड़ा अपनी सांस बचाने को

पंख लग गए आज साइकिल को।


मिलों दूर लंबा सफ़र कौन जाने कब मिले डगर

पैरों में छाले हालात के वो मारे

हौसला फिर भी बना हुआ

"भारत" देश का वो वासी हैं  

चल पड़ा हर डगर -डगर

छूने अपनी पैतृक भूमि के चरण

पाने इक सुकून को चला अपनी सांस बचाने को

पंख लग गए आज साइकिल को

पंख लग गए आज साइकिल को। 


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