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Karishma Gupta

Abstract Drama Tragedy

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Karishma Gupta

Abstract Drama Tragedy

जीने की ख़्वाहिश

जीने की ख़्वाहिश

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इन आँखों ने अश्कों के सैलाब बहुत देखे है,

टूट जाये पलभर में वो ख़्वाब बहुत देखे है।


कितनी मरतबा सफर अधूरा छोड़ना पड़ा मुझको,

मैंने जहाँ बनाया आशियाना वो घर छोड़ना पड़ा मुझको।


गुजरती रही हयात हर पल एक आस मैं, 

चलती रही मैं धूप में छाँव की तलाश मैं।


बस इस तरह ये सफर पूरा कर रही हूँ मैं,

जीने की ख़्वाहिश मैं तिनका-तिनका मर रही हूँ मैं।

तिनका-तिनका मर रही हूँ मैं।


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