सफ़र
सफ़र
न जाने क्यूं बिना रुके सफ़र कर रही हूं मैं
मंजिल नहीं पता, जाना भी तो कहीं नहीं
फिर भी हर रास्ते से जल्दी निकल रही हूं मैं
न धूप की परवाह, न प्यास का एहसास मुझमें
गर ठहरू भी जाऊं, पेड़ बहुत है पर छांव कहीं नहीं
है इत्तिला मुझे के थक रही हूं मैं
न जाने क्यूं फिर भी बिना रुके सफ़र कर रही हूं मैं।