चक्रवात
चक्रवात
प्रेम चक्रवात का ही रूप है
आगमन मानो पूर्ण कोलाहल हो
रफ्तार ऐसी के वक्त भागता हुआ न दिखे
परन्तु जब लौटता है अनेक क्षति के साथ
मौन, स्तब्ध सा छोड़कर
चारों ओर बिखराव
मानो समेटने का साहस न हो
एक वक्त तक घेरे रहता है खालीपन
जो बाद में जीवन का ही हिस्सा प्रतीत होने लगता है
नहीं रहती चाह फिर से उठकर चलने की
किसी नई प्रवृत्ति में ढलने की
फिर जीवन मे स्थिरता हो न हो
मन मे ज़रूर रहती है सदा के लिए।