बेबस मजदूर
बेबस मजदूर


बेबसी उस मजदूर की
जिनके हाथ छल्ली हो जाते हैं
सड़क पर चलते चलते आज
उनके पाँव ना थकते हैं
बस चलते हैं बस चलते हैं
कितने जख्म खा कर बढ़े
बस अपने गाँव की आरजू में
पटरी पर मौत भी देखा
दिल उनके ना धड़कते हैं
बस चलते हैं बस चलते हैं
कभी सरकारी फरमान सुनी
कभी कंधो पर बोझ उठाया
किसी खुशियों में बँधे नहीं
दो रोटी केलिये ना झखते हैं
बस चलते हैं बस चलते हैं
जाना है बस जाना है
बिस्तर गमछा बना लिये और
गठरी तकिया का रूप लिया
उम्मीद किसी से ना रखते हैं
बस चलते हैं बस चलते हैं
पहुंचेगे एक दिन घर अपने
राहों को समझाते हैं
चलते चलते जब काँटे चुभे तो
लहुओं पर ना तकते हैं
बस चलते हैं बस चलते हैं।