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Jay Bhatt

Abstract Drama Others

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Jay Bhatt

Abstract Drama Others

मैं कैसा लिखता हूँ

मैं कैसा लिखता हूँ

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काफी वक़्त गुज़र गया कुछ लिखा ही नहीं,

अब जब लिखने बैठो तो कुछ सूझता ही नहीं,

एक वक़्त था जब सारा दिन लिखता था,

अब सिर्फ कलम हाथ में लिए बैठा हूँ यहीं। 


पता नहीं ये चार पंक्तिया भी कैसे लिख दी,

रुकने कातो मन था

पर दिल की ख़्वाइश कुछ यूँ थी,

मना न कर सका उसे, लिखने का सिलसिला जारी रखा,

रुको जरा, क्या सचमे मैंने अपनी मुँह ज़ुबानी लिख दी ?


अब चलो इतना लिख दिया तो थोड़ा और सही,

तुम पढ़ रहे हो ना, के बैठे वो वहाँ बस युहीं,

देखो भाग न जाना, पूरा पढ़ना इसे,

ये लिखाई तुम्हारी,

और ये लेखक भी ठहरा तुम्हारा ही । 


अरे वाह, अभी तक साथ बने हुए हो,

गज़ब है तुम्हारी यारी,

चलो येतो बतादो कैसी लगी मेरी लिखाई,

एक कलाकार को दे दो उसकी कलाकारी की कमाई।


मान लेता हूँ की पसंद आ रही होगी,

तुम सब हो ही इतने अच्छे। 


चलो अब ये सब सोच ही लिया,

तो इसे लिख भी लेता हूँ,

तुम पढ़ कर बताना,

के मैं कैसा लिखता हूँ। 


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