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ज़िन्दगी लिखनी बाकी है

ज़िन्दगी लिखनी बाकी है

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पढ़ी तो कई किताब गई है,

मेरे इस जीवन में,

मेरी कई सफलताएँ भी जुड़ी है इस जीवन से,

लोगो ने कइयों की जीवन गाथा पढ़ी होगी,

मुझे पढ़ने में थोड़ी रूचि है,

तब ही मुझे मेरी ज़िन्दगी पढ़नी है।


कुछ झूठ जानने हैं,

कुछ सच सुनने हैं,

लोग कहते हैं,

समय गुज़रने ने के साथ सब ठीक हो जाता है,

पर मुझे तो मेरी ही ज़िन्दगी के पन्ने पढ़ने हैं।


खुद चलना है,

खुद गिरना है,

हकीकत तो ये है,

मुझे मेरी ज़िन्दगी का हर

एक पन्ना खुद लिखना है।


भले न हो हज़ार पन्नों की किताब,

फिर भी मुझे लिखना है,

कोरा कागज़ था पहले,

अब श्याही से भरना है,

लेखक तो खुद ही हूँ में मेरी ज़िन्दगी का,

पाठक भी मुझे खुद ही बनना है।


कुछ हासिल करना है,

बहुत उप्पर तक पहुंचना है,

कुछ कड़वे अनुभवों के साथ,

ये ज़िन्दगी का सफर ख़तम करना है।


जिस दिन ज़िन्दगी ख़तम होगी मेरी,

आप यहीं होंगे,

मेरे विचार यहीं होंगे,

शयद मेरी ही जीवन गाथा पढ़ रहे होंगे।


चलो चलता हूँ,

अभी तो सिर्फ कुछ लम्हें लिखे हैं,

अभी पूरी ज़िन्दगी लिखनी बाकी है।


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