बिखरी हुई थी ओ
बिखरी हुई थी ओ
बिखरी हुई थी ओ, समेटा उसे मैं,
और हसना सिखाया।
जो दबे हुए सपने थे उसके,
उसे बाहर लाया।
पूरा करने के बजाय,
सपनों को ईगो से दफनाया
आज वो फिर बिखरी हुई है,
और मैं चाह के भी समेट भी ना पाया
आज टूटा है दिल फिर से उसका
दर्द पहले से कुछ ज्यादा है,
बोली मैं भी इंसान ही हूं।
मेरा दिल कोई सतरंज का प्यादा है,
जब मन आये
मेरे दिल से खेल लेते हो।
तुम्हारा मन चतुर है, तो तुम झेलो ना
मुझे क्यों उसके सामने ठेल देते हो।
सच सच बताओ,
तुम्हारा प्यार मेरे लिए ज्यादा है।
या कही मुझे मरने का इरादा है।