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Naveen Singh

Romance

4  

Naveen Singh

Romance

मैं खडूस सा बंदा था

मैं खडूस सा बंदा था

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वो हमेशा मुस्कुराती थी

मैं मुंह लटकाये घुमता था

वो हमेशा मुझे मनाती थी

मैं मुंह फुलाए बैठा था

वो समझदार सि बंदी थी 

मैं खडूस सा बंदा था


वो हमेशा गुनगुनाती थी

मैं हमेशा बडबडाता था

वो हमेशा शांत रहती थी 

मैं हमेशा गुस्से मे रहते था

वो समझदार सि बंदी थी 

मैं खडूस सा बंदा था


वो बड़े गलती माफ कर देती थी 

मैं छोटे गलती पर भी चिढ़ जाता था

वो हमेशा मुझे हसाती थी

मैं हमेशा उसे रूलाता था

वो समझदार सि बंदी थी 

मैं खडूस सा बंदा था


वो हमेशा चेहरा मेरा पढ़ लेती थी

मैं उसका पढ़ नही पाता था

वो cute सी baby थी

मैं Bodybuilder सा बंदा था

वो समझदार सि बंदी थी 

मैं खडूस सा बंदा था


वो गुस्सा हो के भी सो जाती थी 

मैं रात भर जगा रहता था

वो नाराजगी मैं भी फोन उठाती थी 

मैं तो फोन ही तोड़ देता था

वो समझदार सि बंदी थी 

मैं खडूस सा बंदा था


वो शाम कि ठंडी हवा थी

मैं दोपहर का आंधी का झोंका था

वो मीठी लस्सी कि चुस्की थी

मैं कड़वा काडा का घूंट था

वो समझदार सी बंदी थी 

मैं खडूस सा बंदा था।


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