आखरी मुहब्बत...
आखरी मुहब्बत...
देखो ना...
सिखा सकते हो क्या... मुहब्बत करना मुझे भी..
पता है ना कहाँ आता मुझे करना...
जानते हो तुम बहुत मुहब्बत है आज भी इस दिल में,
पर जताना बिल्कुल नहीं आता मुझे...
पास आती हूँ...छूँ भी लेती हूँ तुम्हें...
पर ना जाने फिर सिमट जाती हूँ....
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निकाल दो मुझे तुम हर आज इस कैद से,
तोड़ दो मेरे हाथों पैरों पड़े बेड़ियों को तुम...
आजाद कर दो मुझे,
चाहो तो अपनी बाहों में जकेड़ दो मुझे,
तुम्हारी साँसों में महका दो मुझे,
तुम्हारे अंग -अंग से तुम अपना बफादार बनालो मुझे,
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पता हैं खामोश रहना आता है मुझे,
अपनी मुहब्बत छिपा भी लेती हूँ शायद...
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ड़रती हूँ बेवफाई से...
सिखा दो ना मुझे फिर वफा पर ऐतबार करना...
बहुत मुहब्बत हैं..अब भी बाकी मुझमें...
इसे यूँ ही कहीं दफन ना होने दो...
तुम कर सकते हो...
.
तुम करोगे ना..
बचा तो लोगे ना तुम ...
मेरी या......अपनी आखरी मुहब्बत को।

