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Raghav Dubey

Romance

4  

Raghav Dubey

Romance

सुन बंजारन

सुन बंजारन

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सुन बंजारन! मेरे दिल की

तू प्रीति निभा मैं गीत लिखूँ…..

झंकृत कर दे मेरे मन को

सा रे गा मा संगीत लिखूँ….


आया सावन पतझड़ बीता

क्यों मन तेरा रीता रीता

तू डाल री प्रीति हिंडोला

फिर मैं सावन के गीत लिखूँ……


मेरे सूने दिल की आशा

तू प्रेम ग्रंथ की परिभाषा

हो जीवन पथ पर साथ तेरा

फिर मैं भी अपनी प्रीत लिखूँ……..


जैसे मोहन की तू राधा

बिन तेरे में आधा आधा

ले चल मुझको तू निधिवन में

फिर से मैं गोपी गीत लिखूँ….


झर झर झरने के जैसी है

हलचल नदियों के जैसी है

तू महक जरा फुलवारी सी

मैं भँवरा बन के गीत लिखूँ


तू देख जरा इन आँखों में

है छवि तेरी इन आँखों में

कर वादा तुम दूर न होना

तो फिर मैं अपनी प्रीत लिखूँ…..


सुन बंजारन ! मेरे दिल की

तू प्रीति निभा मैं गीत लिखूँ…….



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